परिचय
गाजियाबाद शहर के हृदय स्थल पर स्थित श्री चौपला हनुमान मंदिर, जिसे स्थानीय लोग श्रद्धा से 'चौपला मंदिर' या 'बड़े हनुमान जी का मंदिर' भी कहते हैं, लाखों भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर न केवल अपनी प्राचीनता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ होने वाले चमत्कारों और भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी जाना जाता है। मंगलवार और शनिवार को यहाँ भक्तों का तांता लगा रहता है।
मंदिर का गौरवशाली इतिहास
श्री चौपला हनुमान मंदिर का इतिहास केवल ईंट-पत्थरों का नहीं, बल्कि आस्था, तपस्या और चमत्कारों की एक जीवंत गाथा है। इसकी जड़ें श्री दूधेश्वरनाथ मठ की महान संत परंपरा से जुड़ी हैं और इसका हर कण भक्तों की श्रद्धा से सिंचित है। आइए, इस मंदिर की गौरवशाली यात्रा के विभिन्न पड़ावों को जानें।
पौराणिक उद्गम एवं स्थापना
इस सिद्ध पीठ की स्थापना का श्रेय श्री दूधेश्वरनाथ मठ के सप्तम अवस्था प्राप्त सिद्ध संत पूज्य बुध गिरि जी महाराज को जाता है। प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान हनुमान जी ने स्वयं संत बुध गिरि जी को स्वप्न में दर्शन देकर इस स्थान का रहस्य बताया। उन्होंने आदेश दिया कि चौपला पर उनकी एक दक्षिणामुखी (दक्षिण दिशा की ओर मुख वाली) प्रतिमा एक चबूतरे पर उपेक्षित अवस्था में है, जिसे नित्य पूजा-अर्चना कर जागृत किया जाए।
संत जी ने इस दैवीय आदेश को शिरोधार्य किया और भक्तों के सहयोग से उस स्थान पर पहुँचे। उन्होंने स्वयं प्रतिमा को साफ किया, उस पर सिंदूर का लेप (चोला) चढ़ाया और पहली बार 108 हनुमान चालीसा का सविधि पाठ करवाकर उस स्थान को आध्यात्मिक रूप से जागृत किया। यहीं से इस महान तीर्थ की यात्रा आरंभ हुई।
विकास यात्रा: मढ़ी से भव्य मंदिर तक
प्रारंभ में यह एक छोटा सा चबूतरा और एक मढ़ी (छोटा मठ) मात्र था। जैसे-जैसे श्री हनुमान जी की महिमा और चमत्कार फैलते गए, भक्तों का तांता लगने लगा। भक्तों के अटूट सहयोग, दान और महंतों के अथक प्रयासों से मंदिर का धीरे-धीरे विकास हुआ।
- प्रारंभिक निर्माण: चबूतरे के चारों ओर एक छोटे से मंदिर का निर्माण किया गया ताकि प्रतिमा धूप और वर्षा से सुरक्षित रहे।
- मुख्य गर्भगृह का निर्माण: समय के साथ भक्तों की बढ़ती संख्या को देखते हुए एक बड़े और भव्य गर्भगृह का निर्माण हुआ, जिसमें संगमरमर का सुंदर काम किया गया।
- शिखर और गुंबद का निर्माण: मंदिर को भव्य रूप देने के लिए ऊँचे शिखर और कलात्मक गुंबद बनाए गए, जो दूर से ही भक्तों को आकर्षित करते हैं।
- अन्य देवी-देवताओं की प्राण-प्रतिष्ठा: मंदिर परिसर में मुख्य हनुमान जी की प्रतिमा के साथ-साथ भगवान राम दरबार, शिव परिवार और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों की भी प्राण-प्रतिष्ठा की गई, जिससे यह एक पूर्ण धार्मिक परिसर बन गया।
आज यह मंदिर एक विशाल और भव्य संरचना का रूप ले चुका है, जो गाजियाबाद शहर की पहचान बन गया है।
मंदिर से जुड़े चमत्कार और मान्यताएं
इस मंदिर को 'सिद्ध पीठ' यूँ ही नहीं कहा जाता। यहाँ भक्तों द्वारा अनुभव किए गए अनगिनत चमत्कार इसकी जीवंतता का प्रमाण हैं।
- मनोकामना पूर्ति का केंद्र: यह दृढ़ मान्यता है कि यहाँ सच्चे मन से मांगी गई कोई भी मुराद व्यर्थ नहीं जाती। नौकरी, संतान, स्वास्थ्य या किसी भी अन्य समस्या के समाधान के लिए भक्त यहाँ अर्जी लगाते हैं।
- संकटमोचन स्वरूप: भगवान हनुमान के संकटमोचन स्वरूप का यहाँ साक्षात अनुभव होता है। कहा जाता है कि कानूनी मामलों, गंभीर बीमारियों या किसी भी प्रकार के संकट में फँसे लोगों को यहाँ आकर अद्भुत शांति और समाधान मिलता है।
- शनि दोष से मुक्ति: दक्षिणामुखी हनुमान जी की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि शनिवार को यहाँ दीया जलाने और हनुमान चालीसा का पाठ करने से शनि ग्रह से संबंधित दोषों और कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- जागृत प्रतिमा का अनुभव: अनेक भक्त यह अनुभव साझा करते हैं कि उन्हें प्रतिमा के सामने प्रार्थना करते समय एक दिव्य ऊर्जा और साक्षात उपस्थिति का अनुभव होता है, मानो बजरंगबली स्वयं उनकी व्यथा सुन रहे हों।
वास्तुशिल्प और प्रतिमा का स्वरूप
मंदिर का वास्तुशिल्प पारंपरिक नागर शैली का एक सुंदर उदाहरण है। मुख्य प्रतिमा श्री हनुमान जी के दक्षिणामुखी स्वरूप की है, जो अत्यंत दुर्लभ और शक्तिशाली मानी जाती है। प्रतिमा में हनुमान जी का विराट और तेजस्वी रूप दिखाई देता है, जिसमें एक हाथ में गदा और दूसरा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है। पूरी प्रतिमा पर नारंगी सिंदूर का मोटा लेप (चोला) चढ़ाया जाता है, जो उनके ब्रह्मचर्य और तेज का प्रतीक है। मंदिर के स्तंभों, दीवारों और गुंबद पर की गई बारीक नक्काशी भारतीय शिल्प कला की उत्कृष्टता को दर्शाती है।
सिद्ध पीठ: जहाँ संकट कटते हैं
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा की यह चौपाई इस मंदिर की पहचान और भक्तों के अनुभव का सार है:
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
अर्थात्, जो भी शक्तिशाली वीर हनुमान जी का स्मरण करता है, उसके सभी संकट कट जाते हैं और सारी पीड़ाएँ मिट जाती हैं। श्री चौपला हनुमान मंदिर इसी चौपाई का जीवंत प्रमाण है। यहाँ आने वाला हर भक्त किसी न किसी संकट या पीड़ा से मुक्ति की आस लेकर आता है और बजरंगबली की कृपा से उसकी झोली कभी खाली नहीं जाती।
चाहे शारीरिक कष्ट हो, मानसिक उलझन हो, आर्थिक संकट हो या कोई और बाधा, भक्त यहाँ आकर अपनी अर्जी लगाते हैं। कोई मन्नत का धागा बांधता है, कोई नारियल चढ़ाता है, तो कोई 40 दिन तक लगातार हनुमान चालीसा का पाठ करने का संकल्प लेता है। असंख्य भक्तों ने यह अनुभव किया है कि कैसे उनकी बड़ी से बड़ी परेशानियाँ यहाँ आकर चमत्कारिक रूप से हल हो गईं। यही कारण है कि यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि लाखों लोगों के लिए एक 'संकटमोचन धाम' है।
कानन कुंडल कुंचित केसा।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।।
हनुमान जी के कानों में सुशोभित 'कुंडल' का वर्णन यहाँ के स्वर्णकार समुदाय को सीधे तौर पर उनसे जोड़ता है। यहाँ के व्यापारी और स्वर्णकार न केवल हनुमान जी को अपना संकटमोचक मानते हैं, बल्कि उन्हें अपने व्यापार और समृद्धि का संरक्षक भी मानते हैं। कई पीढ़ियों से, यहाँ के दुकानदार अपनी दुकान खोलने से पहले बाबा के दर्शन करना और उनका आशीर्वाद लेना अपनी दिनचर्या का आवश्यक अंग मानते हैं। उनकी अटूट आस्था और समर्पण इस मंदिर के विकास और वैभव का एक प्रमुख आधार रहा है। वे मानते हैं कि उनके व्यापार की सफलता और सुरक्षा बजरंगबली की कृपा से ही संभव है।
वास्तुशिल्प और प्रतिमा का स्वरूप
मंदिर का वास्तुशिल्प पारंपरिक नागर शैली का एक सुंदर उदाहरण है। मुख्य प्रतिमा **श्री हनुमान जी के दक्षिणामुखी स्वरूप** की है, जो अत्यंत दुर्लभ और शक्तिशाली मानी जाती है। प्रतिमा में हनुमान जी का विराट और तेजस्वी रूप दिखाई देता है, जिसमें एक हाथ में गदा और दूसरा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है। पूरी प्रतिमा पर नारंगी सिंदूर का मोटा लेप (चोला) चढ़ाया जाता है, जो उनके ब्रह्मचर्य और तेज का प्रतीक है।
मंदिर की गौरवशाली महंत परंपरा
इस सिद्ध पीठ की स्थापना और विकास में श्री दूधेश्वरनाथ मठ के सिद्ध संतों का अमूल्य योगदान रहा है। उनकी तपस्या और मार्गदर्शन ने ही इस स्थान को जागृत और चमत्कारी बनाया है।

सिद्ध संत बुध गिरि जी महाराज
कैलाशवास वि.सं. 1979त्रिकालदर्शी संत, जिन्हें स्वयं हनुमान जी ने स्वप्न में दर्शन देकर इस मंदिर की स्थापना का आदेश दिया।
पूज्य बुधगिरि जी महाराज बड़े सिद्ध पुरुष हुए हैं। वह सप्तम् अवस्था में पहुँचे हुए सिद्ध सन्त थे। उनकी वाणी में साक्षात् माता सरस्वती का वास था। उनका दिया प्रत्येक आशीर्वाद निश्चित रूप से फलीभूत होता था। बाबा बुधगिरि जी के पैर नहीं थे और शरीर भी भारी था। वह ज्यादातर समय एक ही स्थान पर बैठे रहते थे और निरन्तर अपने इष्ट की साधना में लीन रहते थे। भक्तों से उनके हालचाल जानना बाबाजी को प्रिय था।
मंदिर की स्थापना: श्री हनुमान मंदिर जिसे लोग चौपला मंदिर भी कहते हैं, की स्थापना के बारे में एक प्रसंग प्रचलित है। पूज्य बाबा बुधगिरि जी महाराज को हनुमान जी ने स्वप्न में दर्शन दिये और कहा कि उनकी दक्षिणामुखी मूर्ति चौपला पर स्थापित है, उसे नित्य पूजा-अर्चना कर जागृत करो। बाबा ने आज्ञा को शिरोधार्य किया। कहते हैं कि श्रीकांत गुप्ता नाम का एक भक्त बाबा को पहली बार कंधे पर बिठाकर चौपला तक लाया था, जहाँ एक छोटा सा चबूतरा था। इस चबूतरे पर ही हनुमान जी की दक्षिणामुखी मूर्ति थी, जो उपेक्षित सी थी। बाबा जी ने आस-पास के दुकानदारों को एकत्रित कर मूर्ति की सफाई कराई और सिंदूर लगाया। उनकी प्रेरणा से चबूतरे पर पहली बार 108 बार हनुमान चालीसा का पाठ हुआ।
चमत्कार की कथा: एक दिन एक मनचले युवक ने बाबा जी के बारे में कह दिया 'आज बाबा को कंधे पर बिठाकर हिंडन में फेंक आऊँगा। रोज-रोज के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी।' यह बात सुनकर वह मुस्करा दिये। एक दिन बाबा ने उसी युवक को बुलाया और चौपले तक छोड़ आने को कहा। युवक ने बाबा को कंधे पर बिठाया तो उससे उठा ही नहीं गया, उसे लगा मानो उसके कंधे पर विशाल शिलाखंड रखा हो। उसने गिड़गिड़ाते हुए माफी माँगी। पूज्य बाबा जी ने उसे क्षमा किया और कहा, 'बच्चा, बिना सोचे समझे कोई बात कहना नहीं चाहिए।' तब उनका शरीर फूल के समान हल्का हो गया।
एक ही समय दो स्थानों पर उपस्थिति: जिला बुलन्दशहर के गाँव दरियापुर निवासी केवलराम कौशिक और उनके पुत्र चिरंजीलाल बाबा के शिष्य थे। एक बार केवलराम गढ़मुक्तेश्वर गंगास्नान को गये और उसी समय चिरंजीलाल अपने बेटे बदरीप्रसाद को दर्शन कराने दूधेश्वर मंदिर लाये। जब वे मिले तो केवलराम ने कहा कि उन्हें गंगाजी में गुरु बुधगिरि जी के दर्शन हुए, जबकि चिरंजीलाल ने कहा कि उसी समय बाबा जी ने उनके पुत्र बदरी को गोद में लेकर रुद्राक्ष पहनाया था। जब दोनों ने बाबा से पूछा, तो उन्होंने कहा, "तुम दोनों ने जो देखा ठीक देखा। अब इस बात पर कोई बहस मत करना।" यह उनकी सिद्धि का चमत्कार था।

बंगाली बाबा नित्यानंद गिरि जी महाराज
कैलाशवास वि.सं. 2051परम परोपकारी संत, जिन्हें धन और अन्नपूर्णा की सिद्धि प्राप्त थी और जिनकी वाणी सदैव सत्य होती थी।
पूज्य नित्यानंद गिरि जी महाराज, जिन्हें उनके शिष्य प्रेम से 'बंगाली बाबा' कहते थे, परम परोपकारी, निश्च्छल हृदय, दुःखियों की सहायता को तत्पर और अन्याय विरोधी संत थे। वह झूठ बोलने वालों और चुगली करने वालों से बहुत चिढ़ते थे और उन्हें तुरंत सबके सामने सच बोलने पर मजबूर कर देते थे।
धन एवं अन्नपूर्णा की सिद्धि: बंगाली बाबा को धन की सिद्धि थी। उनकी अंटी में हमेशा हजार रुपये रहते थे, लेकिन यदि कभी दस हजार की भी जरूरत हुई तो बाबा अंटी से निकालकर दे दिया करते थे, फिर भी उनकी अंटी में एक हजार रुपये बचे रहते थे। वे स्वयं आधी धोती पहनते थे पर गरीबों की सहायता में धन व्यय करते थे। माँ अन्नपूर्णा की कृपा से उनकी प्रसाद की छोटी सी बाल्टी कभी खाली नहीं होती थी।
वचन सिद्धि और अंतिम यात्रा: उनकी जिह्वा पर सरस्वती का वास था। एक बार उन्होंने बीमार पं. केदारनाथ की धर्मपत्नी रामप्यारी देवी से कहा, 'पहले तुम मरोगी, बाद में पंडित जी जाएँगे।' उनकी बात सत्य सिद्ध हुई। पं. केदारनाथ ठीक हो गये और २ जनवरी १९६२ को उनकी पत्नी का देहावसान हुआ और ठीक दो वर्ष बाद २ जनवरी १९६४ को पं. केदारनाथ स्वर्गवासी हुए। एक दुर्घटना में कैलाशवासी होने पर जब उन्हें जल समाधि दी जा रही थी, तो उनकी देह वाली पेटी तब तक नहीं डूबी जब तक उनके प्रिय शिष्य गुरचरण ने प्रार्थना नहीं की।

श्रद्धेय महंत राजगिरी जी महाराज
पूर्व महंत, चौपला हनुमान मंदिरएक तपस्वी और सरल स्वभाव के संत, जिन्होंने अपनी निस्वार्थ सेवा से भक्तों को आध्यात्म का मार्ग दिखाया।
चौपला हनुमान मंदिर के गौरवशाली इतिहास में महंत राजगिरी जी महाराज का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। वह एक तपस्वी और सरल स्वभाव के संत थे, जिन्होंने अपने सेवा काल में न केवल मंदिर की देख-रेख की, बल्कि भक्तों को धर्म और आध्यात्म का मार्ग भी दिखाया। हनुमान जी की भक्ति में उनकी गहरी आस्था और मंदिर के प्रति उनकी निस्वार्थ सेवा आज भी भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

श्रीमहंत नारायण गिरि जी महाराज
वर्तमान पीठाधीश्वरसरलता और दिव्य मुस्कान के प्रतीक, जिनके मार्गदर्शन में मंदिर की गौरवशाली परंपरा आज भी फल-फूल रही है।
चौपला हनुमान मंदिर की संत परंपरा में वर्तमान में श्रीमहंत नारायण गिरि जी महाराज का नेतृत्व है, जो ऐतिहासिक सिद्धपीठ श्री दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर के 16वें पीठाधीश्वर भी हैं। उनका जीवन त्याग, तपस्या और जनसेवा का एक अद्भुत उदाहरण है।
बाल्यकाल से संन्यास तक का अद्भुत सफर: श्रीमहंत नारायण गिरि जी महाराज का जन्म 10 जून 1960 को राजस्थान के बाड़मेर जिले के तिलवाड़ा गाँव में हुआ था। छोटी सी उम्र से ही उनका रुझान अध्यात्म की ओर था और उन्होंने संन्यास का मार्ग अपनाया। वे हिमालय के विभिन्न स्थलों पर साधना करते हुए, कश्मीर से कन्याकुमारी तक की पदयात्रा कर चुके हैं।
प्रमुख सेवा प्रकल्प: उनके मार्गदर्शन में मंदिर में अनेक जन-कल्याणकारी प्रकल्प चलाए जा रहे हैं, जो समाज को शिक्षा और सेवा का संदेश देते हैं। इनमें से प्रमुख हैं:
- सन्त निवास: अभ्यागत साधुओं के विश्राम के लिये मंदिर परिसर में गौशाला के पास बरामदे में रुकने की व्यवस्था पूज्य श्रीमहंत नारायण गिरी जी ने बना रखी है।
- अन्नपूर्णा भंडारा: नित्य प्रति साधु-महात्माओं और अभ्यागतों के लिये प्रात: चाय-नाश्ता, मध्यान्ह भोजन, सांयकालीन चाय-नाश्ता व रात्रि भोजन की व्यवस्था नि:शुल्क की जाती है।
- सिद्ध समाधि स्थल: श्री दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर में गर्भगृह के बराबर में ही मंदिर के सिद्ध-संतों की समाधियाँ स्थित हैं, जिनमें से अनेक ने जीवित समाधि ली हुई है। इन समाधियों की नित्य पूजा-अर्चना करने से अनेकों चमत्कार होते रहते हैं।
- गौशाला: मंदिर परिसर में एक भव्य गौशाला भी है, जहाँ गायों की निःस्वार्थ भाव से सेवा की जाती है, जो महाराज जी की प्रेरणा का केंद्र है।
मंदिर की वर्तमान विशेषताएँ एवं गतिविधियाँ
- नियमित रूप से सुबह-शाम भव्य आरती।
- हनुमान जयंती, राम नवमी, शिवरात्रि जैसे पर्वों पर विशेष आयोजन।
- सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का नियमित पाठ।
- भक्तों के लिए प्रसाद और जल की व्यवस्था।
संपर्क एवं दर्शन समय
पता: श्री चौपला हनुमान मंदिर, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश - 201001
दर्शन का समय:
सुबह: 5:00 AM - 1:00 PM
शाम: 4:00 PM - 10:00 PM
(विशेष पर्वों पर समय में परिवर्तन हो सकता है।)