
श्री हनुमान चालीसा
॥ दोहा ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥1॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥2॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥3॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥4॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥5॥
संकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥6॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥7॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥8॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥9॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचंद्र के काज सँवारे ॥10॥
लाय सजीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥11॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥12॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥13॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥14॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥15॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥16॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना । लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥18॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥19॥
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥20॥
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥21॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥22॥
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥23॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥24॥
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥26॥
सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥27॥
और मनोरथ जो कोई लावै । सोइ अमित जीवन फल पावै ॥28॥
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥29॥
साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥30॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥31॥
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥32॥
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥33॥
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥34॥
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥35॥
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥36॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥37॥
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥38॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥39॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥40॥
॥ दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥

श्री सुन्दरकाण्ड (अंश)
(यहाँ सुन्दरकाण्ड के कुछ महत्वपूर्ण अंश या मंगलाचरण लिखें। पूरा सुन्दरकाण्ड बहुत बड़ा होगा, इसलिए संक्षिप्त रूप या प्रमुख चौपाइयाँ देना उचित होगा।)
जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥
जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी॥
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना॥
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रमहारी॥
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श्री बजरंग बाण
॥ दोहा ॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिन्धु के पारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका॥
जाय विभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा॥
बाग उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जम कातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुर पुर महँ भई॥
अब विलम्ब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर होइ दुख करहु निपाता॥
जय हनुमान जयति बल सागर। सुर समूह समरथ भट नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमन्त कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीशा॥
जय अंजनि कुमार बलवन्ता। शंकर सुवन वीर हनुमन्ता॥
बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि शपथ पाय के। राम दूत धरु मारु धाय के॥
जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावो। ताकी शपथ विलम्ब न लावो॥
जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुख नाशा॥
चरन पकरि कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। पायँ परौं कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चञ्चल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल॥
अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होत आनन्द हमारो॥
यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारै॥
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापै। तासों भूत प्रेत सब काँपै॥
धूप देय जो जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेशा॥
॥ दोहा ॥
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

श्री राम स्तुति (श्रीरामचन्द्र कृपालु भजुमन)
श्रीरामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणम् ।
नवकंज लोचन कंजमुख करकंज पदकंजारुणम् ॥१॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि नवनील नीरज सुन्दरम् ।
पटपीत मानहु तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरम् ॥२॥
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्यवंश निकन्दनम् ।
रघुनन्द आनन्दकन्द कौसलचन्द दशरथ नन्दनम् ॥३॥
शिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणम् ।
आजानुभुज शर चापधर सङ्ग्राम जित खरदूषणम् ॥४॥
इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मन रंजनम् ।
मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनम् ॥५॥
॥ दोहा ॥
मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजी पुनी पुनी मुदित मन मन्दिर चली॥

श्री हनुमान अष्टक
॥ श्री हनुमान अष्टक ॥
बाल समय रवि भक्षि लियो तब, तीनहुँ लोक भयो अँधियारो ।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब, छाँड़ि दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥१॥
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि शाप दियो तब, चाहिय कौन बिचार बिचारो ।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥२॥
अंगद के संग लेन गये सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाय सिया-सुधि प्राण उबारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥३॥
रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसि सों कहि सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥४॥
बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥५॥
रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो ।
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥६॥
बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो ।
जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥७॥
काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसों नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥८॥
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लँगूर ।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ॥

श्री हनुमान बाहुक
॥ श्री हनुमान बाहुक ॥
(छप्पय)
सिंधु तरन, सिय-सोच हरन, रबि बाल बरन तनु।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहु को काल जनु॥
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव।
जातुधान-बलवान मान-मद-दवन पवनसुव॥
कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट।
गुन गनत, नमत, सुमिरत जपत समन सकल-संकट-बिकट॥१॥
स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन-तेज-घन।
उर बिसाल, भुज दण्ड चण्ड नख बज्र बज्रतन॥
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन।
कपिस केस, करकस लंगूर, खल-दल-बल-भानन॥
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट।
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट॥२॥
(झूलना)
पञ्चमुख-छमुख-भृगुमुख्य भट असुर सुर, सर्व सरि समर समरत्थ सूरो।
बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो॥
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल बिपुल जल भरित जग जलधि झूरो।
दुवन दल दमन को कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो॥३॥
(सवैया)
भानुसों पढ़न हनुमान गये भानुमन, अनुमानि सिसु केलि कियो फेरफारसो।
पाछिले पगनि गम गगन मगन मन, क्रम को न भ्रम कपि बालक बिहार सो॥
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खबार सो।
बल कैधौं बीररस धीरज कै, साहस कै, सब बिधि समरथ हनुमान सारसो॥४॥
भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो।
कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर रस बारि निज सरस सफल भो॥
एक एक सों यो कहैं काको न कोप भाजै, आजु निज सेन को सहाय यम ताल भो।
देखि कपि केसरी किशोर को प्रताप, कहैं सब लोग चाप आजु कपाल भो॥५॥
गोपद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निःसंक परपुर गलबल भो।
द्रोन सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक ज्यों कपि कौतुक उछाल भो॥
कालनेमि कपट कुरंग ज्यों गरे अँगुरी, दियो लै जुड़ाई सब दुष्ट दल दल भो।
राम संग्राम सागर अपार पार पायो ताको, जाको बाहुबल सेतु सम तोल भो॥६॥
राम को सनेह, राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवार भो।
मुद्रिका गिराइके, सिन्धु पारभयो ताही सों, बात बात में ही सर सब सोखि डार भो॥
बानर सों बानी कहि पठयो सो लंक गढ़, मगढ़ को जीति रच्छा रामद्वार भो।
नाम लै निसिचर निकरनि मारि डारो, को है जो न मानै हनुमान सम सार भो॥७॥
देवी देव दानव दयावने न देखे सुने, चित्रहूँ में काहू के न ऐसो बल भारी भो।
एक एक सो अनेक कहे तुलसी सो मानौ, जाके हिये काहु देवता को डर भारी भो॥
बालि सो महाबली मिल्यो सो दलि मलि डार्यो, देखत ही जाको सब लोक भयो झारी भो।
को है जो न जानत प्रताप केसरी किसोर, जामवंत कहै आजु काज सब सार भो॥८॥
सेये हनुमान प्रान मानि राम सीय लखन, अपने अपने की सब काहू पन राखी है।
देव देवतरु तर कामना अनेक कहि, सब कहूँ सुलभ जहाँ तहाँ साखी है॥
अगम सुगम कियो काज सब जाके बल, तुलसी सो जिय जानि सिय साखी है।
सदा ही संकट सोच सब विधि सब को, जाके भरोसे रहै ताको सब राखी है॥९॥
जान सिरोमनि हौ हनुमान सदा, जन को गुनगान तिहारो सो मानौ।
बालि कि त्रास कपीस बस्यो गिरि, ताको जो त्रास मिट्यो सोऊ जानौ॥
अंगद लैन गये सिय को तब, भयो जु काज सोऊ मन आनौ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम सोऊ जानौ॥१०॥
ध्यान हनुमान को बिमल सदा करै सोई, ताको तुरत ही फल चारों हाथ आवै।
ज्ञान विज्ञान को निधान हनुमान जानि, जाको ध्यान धरै सोई सब कुछ पावै॥
तुलसी सो साँचो सेवक है हनुमान को, जाके हिये और देवता न भावै।
जाको हनुमान सो सहाइ, ताको जगत में, कौन है जो नाथ सो न पावै॥११॥
महाबल पुंज हनुमान महाप्रभु, जाके प्रताप सो तीनिहु लोक हलाको।
भक्तनि को अभयंकर सदा, दुर्जन को काल बिकराल ताको॥
जाको सुमिरन किये संकट कटै, सोई तुलसी को प्रभुपालक ताको।
नाम लेत सब सुख लहै, जो कोउ ध्यान करै, सोई पावै पद निर्वाण ताको॥१२॥
अति ही अयानक पवनसुत दुख पायो, ता दिन सो हौं तोहिं टेरत हौं।
तू जन की पीर करै दूर सदा, मैं तो दीन मलीन दुख टेरत हौं॥
मैं अपनी ओर सों साँच कहौं, तोहिं बार बार अनेक बेर टेरत हौं।
तू तो समर्थ प्रभु साँचो सोई, काहे न सुनि बिनती मोर टेरत हौं॥१३॥
तेरे भरोसे मैंने काहू सों न कही कछु, तू ही तो गरीब नेवाज सदा कहलावै।
मैं तो गरीब तेरो दास कहाउँ, तू साँचो गरीब नेवाज सोई कहलावै॥
मेरी तो एक टेक तेरे ही नाम की, और न कोउ जासों मन मेरा भावै।
तोहिं छाँड़ि और को भजौं मैं गुसाईं, जब तू ही गरीब नेवाज सोई कहलावै॥१४॥
दीन दयाल दया करि दे अपनी, मैं तो मलीन तू पावन नाम कहावै।
मैं तो पतित तू पतित पावन, मेरे अवगुन तू न चित्त लावै॥
तू तो कृपालु मैं दीन हौं तेरो, तू काहे न दास की ओर चित्त लावै।
मैं तो अनेक अनेक अधम कियो, तू तो अधम उधारन नाम कहावै॥१५॥
जग में अनेक अनेक अधम भए, तिन में को है जो तेरे नाम सोई तारे।
तू तो गरीब नेवाज कहावै, काहे न गरीब को काज सँवारे॥
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, मेरे अवगुन तू जनि चित्त धारे।
तोहिं छाँड़ि और को भजौं गुसाईं, जब तू ही गरीब नेवाज सोई सँवारे॥१६॥
मैं तो बहुत बहुत दुख पायो, तेरो नाम लेत सब दुख बिसरायो।
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैंने अनेक अनेक दुख तें पायो॥
तू तो समर्थ है सब विधि सोई, काहे न दास को दुख बिसरायो।
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, तू काहे न गरीब को काज बिसरायो॥१७॥
तू तो गरीब नेवाज कहावै, मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ।
मेरी तो एक टेक तेरे ही नाम की, और न कोउ जासों मन मेरा लाउँ॥
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैं तो अनेक अनेक दुख पाउँ।
तोहिं छाँड़ि और को भजौं मैं गुसाईं, जब तू ही गरीब नेवाज सोई पाउँ॥१८॥
तेरे नाम को भरोसे मैंने सब कोऊ तज्यो, तू ही तो मेरो प्रभु साँचो सोई।
मैं तो तेरो दास कहाउँ गुसाईं, मेरे अवगुन तू जनि देखै कोई॥
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैं तो अनेक अनेक दुख रोई।
तोहिं छाँड़ि और को भजौं मैं गुसाईं, जब तू ही गरीब नेवाज सोई होई॥१९॥
मैं तो बहुत बहुत पछितायो, तेरे नाम लिये सब ताप नसायो।
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैंने अनेक अनेक दुख तें पायो॥
तू तो समर्थ है सब विधि सोई, काहे न दास को दुख नसायो।
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, तू काहे न गरीब को काज नसायो॥२०॥
मैं तो अनेक अनेक अधम कियो, तू तो अधम उधारन नाम कहावै।
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, काहे न दास की ओर चित्त लावै॥
तू तो समर्थ है सब विधि सोई, काहे न दास को दुख मिटावै।
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, तू काहे न गरीब को काज मिटावै॥२१॥
तू तो गरीब नेवाज कहावै, मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ।
मेरी तो एक टेक तेरे ही नाम की, और न कोउ जासों मन मेरा लाउँ॥
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैं तो अनेक अनेक दुख पाउँ।
तोहिं छाँड़ि और को भजौं मैं गुसाईं, जब तू ही गरीब नेवाज सोई पाउँ॥२२॥
मैं तो बहुत बहुत दुख पायो, तेरो नाम लेत सब दुख बिसरायो।
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैंने अनेक अनेक दुख तें पायो॥
तू तो समर्थ है सब विधि सोई, काहे न दास को दुख बिसरायो।
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, तू काहे न गरीब को काज बिसरायो॥२३॥
तेरे नाम को भरोसे मैंने सब कोऊ तज्यो, तू ही तो मेरो प्रभु साँचो सोई।
मैं तो तेरो दास कहाउँ गुसाईं, मेरे अवगुन तू जनि देखै कोई॥
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैं तो अनेक अनेक दुख रोई।
तोहिं छाँड़ि और को भजौं मैं गुसाईं, जब तू ही गरीब नेवाज सोई होई॥२४॥
मैं तो बहुत बहुत पछितायो, तेरे नाम लिये सब ताप नसायो।
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैंने अनेक अनेक दुख तें पायो॥
तू तो समर्थ है सब विधि सोई, काहे न दास को दुख नसायो।
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, तू काहे न गरीब को काज नसायो॥२५॥
तू तो अधम उधारन हारो, मैं तो अधम तेरो ही कहाउँ।
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, काहे न दास की ओर चित्त लाउँ॥
तू तो समर्थ है सब विधि सोई, काहे न दास को दुख मिटाउँ।
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, तू काहे न गरीब को काज मिटाउँ॥२६॥
मैं तो अनेक अनेक अधम कियो, तू तो अधम उधारन नाम कहावै।
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, काहे न दास की ओर चित्त लावै॥
तू तो समर्थ है सब विधि सोई, काहे न दास को दुख मिटावै।
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, तू काहे न गरीब को काज मिटावै॥२७॥
मैं तो बहुत बहुत दुख पायो, तेरो नाम लेत सब दुख बिसरायो।
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैंने अनेक अनेक दुख तें पायो॥
तू तो समर्थ है सब विधि सोई, काहे न दास को दुख बिसरायो।
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, तू काहे न गरीब को काज बिसरायो॥२८॥
तेरे नाम को भरोसे मैंने सब कोऊ तज्यो, तू ही तो मेरो प्रभु साँचो सोई।
मैं तो तेरो दास कहाउँ गुसाईं, मेरे अवगुन तू जनि देखै कोई॥
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैं तो अनेक अनेक दुख रोई।
तोहिं छाँड़ि और को भजौं मैं गुसाईं, जब तू ही गरीब नेवाज सोई होई॥२९॥
मैं तो बहुत बहुत पछितायो, तेरे नाम लिये सब ताप नसायो।
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैंने अनेक अनेक दुख तें पायो॥
तू तो समर्थ है सब विधि सोई, काहे न दास को दुख नसायो।
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, तू काहे न गरीब को काज नसायो॥३०॥
तू तो अधम उधारन हारो, मैं तो अधम तेरो ही कहाउँ।
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, काहे न दास की ओर चित्त लाउँ॥
तू तो समर्थ है सब विधि सोई, काहे न दास को दुख मिटाउँ।
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, तू काहे न गरीब को काज मिटाउँ॥३१॥
तेरे भरोसे मैंने काहू सों न कही कछु, तू ही तो गरीब नेवाज सदा कहलावै।
मैं तो गरीब तेरो दास कहाउँ, तू साँचो गरीब नेवाज सोई कहलावै॥
मेरी तो एक टेक तेरे ही नाम की, और न कोउ जासों मन मेरा भावै।
तोहिं छाँड़ि और को भजौं मैं गुसाईं, जब तू ही गरीब नेवाज सोई कहलावै॥३२॥
दीन दयाल दया करि दे अपनी, मैं तो मलीन तू पावन नाम कहावै।
मैं तो पतित तू पतित पावन, मेरे अवगुन तू न चित्त लावै॥
तू तो कृपालु मैं दीन हौं तेरो, तू काहे न दास की ओर चित्त लावै।
मैं तो अनेक अनेक अधम कियो, तू तो अधम उधारन नाम कहावै॥३३॥
जग में अनेक अनेक अधम भए, तिन में को है जो तेरे नाम सोई तारे।
तू तो गरीब नेवाज कहावै, काहे न गरीब को काज सँवारे॥
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, मेरे अवगुन तू जनि चित्त धारे।
तोहिं छाँड़ि और को भजौं गुसाईं, जब तू ही गरीब नेवाज सोई सँवारे॥३४॥
मैं तो बहुत बहुत दुख पायो, तेरो नाम लेत सब दुख बिसरायो।
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैंने अनेक अनेक दुख तें पायो॥
तू तो समर्थ है सब विधि सोई, काहे न दास को दुख बिसरायो।
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, तू काहे न गरीब को काज बिसरायो॥३५॥
तेरे नाम को भरोसे मैंने सब कोऊ तज्यो, तू ही तो मेरो प्रभु साँचो सोई।
मैं तो तेरो दास कहाउँ गुसाईं, मेरे अवगुन तू जनि देखै कोई॥
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैं तो अनेक अनेक दुख रोई।
तोहिं छाँड़ि और को भजौं मैं गुसाईं, जब तू ही गरीब नेवाज सोई होई॥३६॥
मैं तो बहुत बहुत पछितायो, तेरे नाम लिये सब ताप नसायो।
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, मैंने अनेक अनेक दुख तें पायो॥
तू तो समर्थ है सब विधि सोई, काहे न दास को दुख नसायो।
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, तू काहे न गरीब को काज नसायो॥३७॥
तू तो अधम उधारन हारो, मैं तो अधम तेरो ही कहाउँ।
तू तो कृपालु दयालु गुसाईं, काहे न दास की ओर चित्त लाउँ॥
तू तो समर्थ है सब विधि सोई, काहे न दास को दुख मिटाउँ।
मैं तो गरीब तेरो ही कहाउँ, तू काहे न गरीब को काज मिटाउँ॥३८॥
सिंघिका सँहारि बल सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है।
लंक परजारि मकरी बिदारि बार बार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है॥
तोरि जमकातरि मंदोदरी कठोरि आनी, रावन की रानी त्यों अनी اخيआरी है।
भली विधि राम की सँवारी सब काज हनुमान, ताकी बाँह पीर क्यों न तुलसी तिहारी है॥३९॥
राय रनाधीर बीर बारिधि बिकाई कीन्हीं, जाके बल रघुपति परमिति पाई है।
जाके बल बिपुल बड़वानल बुझाई दीन्हीं, जाके बल बारेधि की बेटी ब्याही आई है॥
तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीसनाथ, देखियत दूलह दयालु रघुराई है।
आपनी सी कहौं साँच साँच पतिआईऐ जू, सपने न देखौं दुखदाई कपिराई है॥४०॥
(घनाक्षरी)
केसरीकिसोर रनरोर बिसराम सब, राम के दुलारे भक्त कामतरु बारे हैं।
अति ही उदार सार अंजनीकुमार बीर, केसरी के तनय सुमित्रा के पियारे हैं॥
एक एक सों अनेक तुलसी बखानै कहा, जाके हिय हनुमान सदा ही पधारे हैं।
तेरो नाम लेत होत सबही को काज पूरन, जाको तेरो ध्यान ताको सब दुख टारे हैं॥४१॥
मातुल विभीषन सों मिलि कै सिखावन सी, दीनी है ताही को रघुनाथ जी पियारो कियो।
अंगद उछंग भेट्यो प्रीति सों प्रबोध कियो, ताको तुम स्वामी सब भाँति ही पियारो कियो॥
आपनी भलाई सब विधि तुलसी गुसाईं, कीजै सोई जासों तेरो काज सब सारो कियो।
बाँह की बेदन बाँहपगार पुकारत हौं, आरत पुकार सुन बाहुबल टारो कियो॥४२॥
टूकनि को घर घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है।
कीन्ही है सँभार सार अँजनीकुमार बीर, आपनो बिसारि हैं न मेरेहू भरोसो है॥
इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक कोसो है।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनी को सो है॥४३॥
अपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँहबेदन कही न सहि जाति है।
औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है॥
करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो रामदूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है॥४४॥
॥ दोहा ॥
प्रेम प्रतीति कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान॥